रविवार, 31 मई 2020
डार्क वेब क्या है? वहां पर क्यों जाना मना है? अस्तित्व में कैसे आया?
प्रस्तुतकर्ता Jitendra Indave in: Cyber
आज हम दुनिया की इंटरनेट के बिना कल्पना नहीं कर सकते। यह वेंटिलेटर पर दिए गए ऑक्सीजन की तरह हो गया है। जिसके निकाल देने से दुनिया मानो रुक जाएगी। दिनभर गूगल, यूट्यूब, सोशल मीडिया एप, ऑनलाइन गेम और ना जाने क्या क्या हम इंटरनेट पर एक्सप्लोर करते रहते हैं। लेकिन एक बात जानकर आपको जरूर हैरानी होगी कि जिस इंटरनेट का आप इस्तेमाल आप कर रहे हो या कर सकते हो वह तो सिर्फ इंटरनेट का चार से पांच प्रतिशत हिस्सा ही है । इंटरनेट पर ऐसा बहुत कुछ है जिसके बारे में आप नहीं जानते। वह काली दुनिया है जिसे हर कोई एक्सिस नहीं कर सकता और खतरों से भरी हुई है इस दुनिया को हम कहते हैं Dark Web.
इसकी उत्पत्ति के बारे में जानना काफी दिलचस्प होगा। दुनिया को तीन भागों में डिवाइड कर सकते हैं दुनिया को तीन भागों में डिवाइड कर सकते हैं उसमे पहला है इंटरनेट-
जिस पर वर्तमान में वह सारे इंफॉर्मेशन और डाटा जिसे हम आसानी से गूगल और हमारे वेब ब्राउज़र के थ्रू आसानी से एक्सिस कर सकते हैं । जिसे दुनिया का कोई भी यूज़र डायरेक्टली जाकर देख सकता है । मतलब दुनिया का कोई भी इंसान उस चीज को गूगल जैसे सर्च इंजन का इस्तेमाल करके उसकी सारी की सारी इनफार्मेशन को डायरेक्टली एक्सिस सकता है । उसे किसी भी तरह के अकाउंट या किसी पासवर्ड की जरूरत नहीं होती ।
यह ऐसे वेबपेजेस होते हैं जिन्हें एक एक्सिस करने के लिए आपको पासवर्ड की जरूरत होती है और जहां आपकी पर्सनल इनफॉरमेशन प्रेजेंट होती है जैसे कि ऑनलाइन बैंकिंग साइट, मेडिकल साइट, आपके कॉलेज की साइट जहां जाकर आप रिसर्च पेपर वगैरह स्टडी कर सकते हो।अलग-अलग ऑर्गेनाइजेशन का डाटा स्टोरेज भी इसी का एक हिस्सा है।
Deep Web पूरी तरह legal होता है और अगर आपके पास इसका एक्सिस कंट्रोल है तो आप आसानी से अपने पर ब्राउज़र से इसे एक्सिस कर सकते हैं।
यह Deep Web का ही हिस्सा है कहने को तो यह डीप वेब का कुल मिलाकर 1 प्रतिशत हिस्सा भी नहीं होगा लेकिन यहां से कुछ इलीगल होता है पर इसे आप अपने नॉर्मल ब्राउज़र से एक्सिस नहीं कर सकते।
डार्क वेब अभी हाल ही के कुछ सालों में आम पब्लिक के बीच पॉपुलर होना शुरू हुआ है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इससे पहले इसका अस्तित्व नहीं था , जितना पुराना इंटरनेट है उतना ही पुराना है यह भी है। मतलब इंटरनेट जब अस्तित्व में आया तभी इसकी नीव डाल दी गई थी । सन 1969 में यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ डिफेन्स ने ARPANet (Advance Research Project Agency Network ) को विकसित किया था । यह एक ऐसा नेटवर्क था जो बाद में इंटरनेट की बुनियाद साबित हुई। इसका मकसद था सूचनाए एवं जानकारिया गोपनीय ढंग से ट्रांसफर करना ।
पहली बार 1972 में स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के कुछ स्टूडेंट्स ने इसका गलत काम के लिए इस्तेमाल किया।
इंटरनेट टेक्नोलॉजी लगातार विकसित हो रही थी और साथ में यह काली दुनिया भी आकार ले रही थी। 1990 के दशक में ऑनलाइन म्यूजिक काफी पॉपुलर होने लगा और साथ ही पॉपुलर हुई इसकी इलीगल शेयरिंग और डिस्ट्रीब्यूशन । हालांकि अभी यह सब इंटरनेट पर ही हो रहा था और डार्क वेब ने अपना अलग अस्तित्व नहीं लिया था । डार्क वेब के असल कॉन्सेप्ट और इसके अस्तित्व की शुरुआत हुई वर्ष मार्च 2000 में, जब स्कॉटलैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट Ian Clark ने अपने ग्रेजुएशन प्रोजेक्ट के रूप में फ्री नेट को जन्म दिया था । फ्री नेट एक सेंसरशिप रजिस्टेंस कम्युनिकेशन प्लेटफार्म है जिसका मकसद था इंटरनेट पर फ्रीडम ऑफ स्पीच को सपोर्ट करना । यहां पर लोग पहचान छुपाकर कुछ भी कर सकते थे मतलब ना ही कोई गवर्नमेंट का डर और ना ही किसी दूसरी बात का । इसको बनाने के पीछे चाहे कोई भी मकसद रहा हो लेकिन अब लोगों को एक ऐसा प्लेटफार्म मिल चुका था जहां बिना कोई टेंशन के इलीगल पोर्नोग्राफी कंटेंट और पायरेटेड कंटेंट खुलेआम शेयर किए जा सकते थे क्योंकि वहां पर कोई भी यह पता नहीं कर सकता था की यह कंटेंट किसने डाला है। उसका सोर्स ढूढ़ना नामुमकिन था। ऐसे लोगों के सामने प्रॉब्लम यह रह गई थी कि वर्चुअल दुनिया में यह कंटेंट सुरक्षित थे लेकिन रियल वर्ल्ड में इसे कहां रखा जाए और सर्वर कहां बनाया जाए? और फिर ऐसे लोगों के लिए मसीहा का काम किया माइकल बेट्स में जो यूनाइटेड किंगडम के पास Sealand नाम की एक सेल्फ-डिक्लेयर्ड माइक्रोनेशन का प्रिंस था। दरअसल Sealand कोई देश नहीं बल्कि समुद्र में दो टॉवर्स पर खड़ा एक प्लेटफार्म है जिसे माइकल के पिता बेडी रॉय बेटस ने बड़ी चालाकी से हड़प लिया था।
यह इंटरनेशनल वाटर में था इसलिए कोई भी देश उस पर क्लेम नहीं कर पाया है । माइकल बेट्स ने है एक कम्पनी बनाई जो लोगों को इस तरह के इलीगल और सेंसिटिव कंटेंट छिपाने में मदद करती थी और यह सब होता था Sealand में जहां किसी भी देश का कानून नहीं चलता था । यही से डार्क वेब और तेजी से आगे बढ़ा साल 2002 आते-आते डार्क वेब को कुछ ऐसा मिला जो उसके डवलपमेंट में एक माइलस्टोन साबित हुआ । और वो चीज थी Tor यानी कि द ओनियन राउटर। यह वही ब्राउज़र है जो आज डार्क वेब की जान है और यह ब्राउज़र डार्क वेब को एक्सिस करने का सबसे पॉपुलर प्लेटफॉर्म है।
टोर का इस्तेमाल अपनी पहचान छुपाकर , लोकेशन छुपाकर किसी भी वेब साइट तक पहुंचने के लिए किया जाता है । इनके डोमेन नेम में onion एक्सटेंशन होता है। उदाहरण स्वरुप google.onion
इस तरह की वेबसाइट को इंटरनेट एक्सप्लोरर, सफारी, गूगल क्रोम , ओपेरा जैसे किसी भी वेब ब्राउज़र से एक्सिस नहीं किया जा सकता है। इनको एक्सिस करने के लिए Tor ब्राउज़र की आवश्यकता होती है।
इसे भी यु एस इंटेलिजेंस एजेंसी से जुड़े साइंटिस्टों ने बनाया था जिसे अगले ही साल पब्लिक के लिए भी रिलीज कर दिया गया । इस तरह से डार्क वेब की सारी कड़ियां जुड़ती जा रही थी बहुत से इलीगल काम इन वेबसाइट पर खुले आम हो रहे थे लेकिन अभी भी एक चीज की कमी थी और वह पैसा। मतलब इस पर आप पैसे की ट्रांजैक्शन कैसे करोगे क्योंकि कोई भी बैंकिंग वेबसाइट आपको बिना अपनी आइडेंटिटी बताए बिना पैसे ट्रांसफर करने तो नहीं दे सकती और फिर साल 2008 में satoshi nakamoto बिटकॉइन नाम की वर्चुअल करंसी को लेकर आये। इस तरह से डार्क वेब की आखिरी कड़ी जुड़ गई ।
बिटकॉइन एक क्रिप्टो करेंसी होती है जिसे आप वर्चुअल मनी भी कह सकते हो मतलब इसका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं है। भारतीय करेंसी कि आप नोट देख सकते हो सिक्के देख सकते हो लेकिन बिटकॉइन का वास्तव में ना कोई नोट्स है ना कोई सिक्का ।
कई देशों में इस करेंसी को गैरकानूनी घोषित किया गया है। 2010 आते आते टोर और क्रिप्टो करेंसी के खतरनाक कॉन्बिनेशन ने ऑनलाइन ब्लैक मार्केट को जन्म दिया। ऐसा ही एक जाना माना ब्लैक मार्केट था सिल्क रोड ब्लेक मार्केट, इसे फरवरी 2011 में Ross William ने बनाया था। यहां पर हर तरह के गोरखधंधे और गैरकानूनी काम को देखिए जैसे कि - Online Gambling, Child Pronography, Illegal Drug Sell,Hacking,Selling Fake Licences, Sell Id and Password, Credit card detail और आत्नकियोको हथियार तक बेचे जाते थे.।
अमेरिका की ऍफ़ बी आई तो ह्यूमन ट्रेफिकिंग के मामले तक पकड़ चुकी है। कई बार तो कॉन्ट्रैक किल्लर तर हायर किया जाता है. किसी को तड़पा तड़पा कर मारते हुए मजे लेने तक लिए बोली लगती है। (इस विषय में बताते हुए मुझे हॉलीवुड की hostel मूवी याद आ गई , जीसमे यह दिखाया गया है , आज भी कई सारे देशो में वह मूवी बेन है। ) कहने का मतलब हर वो गैर क़ानूनी चीज जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते या फिर सोचकर रोंगटे खड़े हो जाये , इसलिए सलाह दी जाती है यदि आवश्यकता नहीं है तो फिर डार्क वेब की तरफ गलती से भी ना जाए।
यह नेटवर्क अक्टूबर 2013 में अमेरिका की बंद करवाने में कामयाब हो गई लेकिन सिर्फ 3 सालों में सिल्क रोड करीब चार हजार करोड़ डॉलर से भी ज्यादा का व्यापार कर चुका था और यह सारा व्यापार के बिटकॉइन के माध्यम से हुआ था। इसके बाद सभी लोग उसको जानने के लिए उत्सुक होने लगे और बुरे लोग इस्तेमाल करना शुरू करने लगे आज डार्क वेब पर दुनिया भर के गैरकानूनी और इलीगल धंदे किए जाते हैं इस तरह की इंडस्ट्री को डिवेलप करने में बहुत डार्क वेब का बहुत बड़ा हाथ है। यहां पर क्रिप्टो करेंसी की मदद से मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए पैसे जुटाना भी बहुत आसान कर दिया गया है।
मार्च 2019 में न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च की मस्जिद पर हुए हमले के तार भी डार्क वेब का इस्तेमाल से ही जुड़े हुए हैं । एक अनुमान के मुताबिक डार्क वेब के गलत इस्तेमाल की वजह से हर दिन दुनिया के करीब 10 लाख लोग प्रभावित होते हैं। अगर हम अपने देश भारत की बात करें तो एक रिपोर्ट के मुताबिक डार्क वेब की के गलत इस्तेमाल की वजह से भारत हर साल करीब 2000 करोड़ डॉलर का नुकसान झेल रहा है और हर तरह के लीगल व्यापार भी हमारे देश में अपने पैर फैला रहे हैं , क्योंकि इसका इस्तेमाल करते समय हमारी लोकेशन ट्रेस नहीं होती इसीलिए किसी भी देश में क़ानूनी हो या फिर गैरकानूनी इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता । अगर हम आज की बात करें तो ऐसा कहा जा रहा है लगभग खत्म होता जा रहा है और अलग-अलग एजेंसी ने इस पर कई और बिजनेस और गैर क़ानूनी प्रवृतियो को को बंद करवाने में सफलता हांसिल की है, लेकिन बात तो वहीं आ जाती है कि इसका साइज तो मैटर करता ही नहीं है डार्क वेब चाहे पूरे इंटरनेट पर कब्जा कर ले या फिर उसके ०. 1 प्रतिशत हिस्से पर कुछ लोग अगर गलत इरादों से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं तो बाकी लोगों को इसका नुकसान होता रहेगा । हैकर्स का एक छोटा सा ग्रुप मिलकर बड़ी से बड़ी कंपनी को घुटनो पर ला सकता है और उसे पूरी तरह से कंगाल कर सकता है। आखिरी में सवाल आता है कि इतना ही खतरनाक है और इतनी सारी इलीगल एक्टिविटी हो रही हैं पूरी तरह से बंद कर देते। हर देश की गवर्नमेंट चाहती है कि डार्क वेब का अंत क्रकर दे , उसके लिए लगातार कोशिश भी करते रहते हैं।
लेकिन दूसरे नजरिए से सोचने वाली बात यह भी है कि गवर्नमेंट की अलग-अलग एजेंसियां भी तो अपने इंफॉर्मेशन सिक्योर रखना चाहती होगी उनको भी तो इस तरह के नेटवर्क की जरूरत पड़ेगी मतलब साफ है कि यह चोर पुलिस का खेल जारी रहने वाला है कोई अच्छी नियत के साथ इस्तेमाल कर रहा होगा तो कोई बुरी नियत के साथ इस्तेमाल कर रहा होगा। ऐसे में यह कहा जाकर ख़तम होगा ? सोचने लायक बात है।
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